◆समंदर हिलोरने की रस्म अदा की।
सायला । निकटवर्ती भुण्डवा चोधरी , बावतरा रायला नाड़ा में सुथार समुंदर मंथन में हुआ समुंदर हिलोरने की वर्षो पुरानी रस्म एक फिर से ग्रामीणों संस्कृति जीवंत हो उठी। बहनों ने अपने भाइयों संग एक साथ समुद्र मंथन किया। तालाब में खड़ी इन बहनों को भाइयों ने चुनड़ी ओढ़ाकर अपने हाथों से पानी पिलाकर रस्म अदा की। गांव में समुद्र मंथन को लेकर जनसैलाब उमड़ पड़ा।
इसी तरह भूण्डवा तालाब हिलोरने की रस्म को लेकर सोमवार सुबह से ही तालाब पर भीड़ जुटनी सुरु हो गई। महिलाओं ने सम्दरियो हिलोरा खाए,, वीरा रे वेगा आइजो,, आयो आयो जेठ ने आषाढ़ मोरा सासुजी जैसे गीत। जानकारी के अनुसार कार्यक्रम को लेकर महिलाएं रंग-बिरेंगे वस्त्र व आभूषण पहनकर बैण्डबाजों की मधुर स्वहरियो के बिच ढोल की थाप व थाली की झंकार के साथ मंगलगान करती हुई। तालाब पर बने घाट पर पहुँचे विधि-विधान व मंत्रोच्चारण के साथ तालाब का पूजन कर समुद्र हिलोरने की रस्म अदा की। ये त्यौहार एकता और अनुशासन का अगूंठा संगम है। हजारों लोग अपनी परम्परा को निभाने के लिए एक साथ खड़े होकर भ्रातृत्व भावना को बढ़ावा देते है। इसमे सभी हिन्दू जातियों के भाई-बहन एक ही तालाब में एक साथ यह रस्म अदा करते है।
◆ यह है समुद्र मंथन परम्परा:- गांवो के समुद्र मंथन की परम्परा भी बहुत पुरानी बात है। जानकर लोग बताते है की यह प्राचीनकाल में देवताओं व असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन की घटना से प्रेरित है। इस आयोजन में गांव की बहू व बेटियां शामिल होती है भाई इनके लिए कपड़े व आभूषण की ओढ़नी लेकर आते है। वे तालाब के पानी को साक्षी मानकर रस्म अदायगी करते है।