◆ग्रामीण क्षेत्र में झोलाछाप डॉक्टरों का जाल
◆प्रशासन नही कर रहा है कोई कार्यवाही
कैलाश नगर (मनोहर सिंह) उपतहसील सहित आसपास के गांवों मे झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा बिना पंजीयन के एलोपैथी चिकित्सा व्यवसाय ही नहीं किया जा रहा है, बल्कि बिना ड्रग लाइसेंस के दवाओं का भंडारण व विक्रय भी अवैध रूप से किया जा रहा है। दुकानों के भीतर कार्टून में दवाओं का अवैध तरीके से भंडारण रहता है। इन दिनों मौसमी बीमारी ने दस्तक दी है, जिसके बाद झोलाछाप डॉक्टरों की दुकानें मरीजों के लिए फिर सजने लगी है, मौसम बदलने से उल्टी, दस्त, बुखार जैसी बीमारियां ज्यादा पनप रही हैं, झोलाछाप डॉक्टर बीमारियों का फायदा उठाकर मरीजों को जमकर लूटा जा रहा हैं।
◆दिखावे की होती है कार्यवाही
झोलाछाप डॉक्टरों के धंधे की जानकारी प्रशासन को भी है, समय-समय पर एक-दो क्लीनिक में छापा मारकर खानापूर्ति कर ली जाती है, काफी झोलाछाप तो ऐसे हैं, जिन्होंने खुद को बंगाली डॉक्टर, वैद्य, हकीम व अन्य डिग्री धारक घोषित कर रखा है, स्वास्थ्य विभाग कभी इनकी डिग्रियों की जांच नहीं करता, कइयों के पास दूर-दूर के राज्यों से जारी फर्जी डिग्रियां हैं, कई बार तो बंगाली चिकित्सा पद्धति के नाम पर उक्त झोलाछाप लोगों के जान से खिलवाड़ करने तक से नहीं चूकते, मजे की बात तो यह है कि दिखावे की होने वाली कार्यवाही के कुछ दिनों बाद कैसे उक्त संस्थान दोबारा खुल जाते हैं।
◆सो रहा है प्रशासन
ग्रामीण क्षेत्र में शासकीय डाक्टरों के नहीं होने से पूरी व्यवस्था ही भगवान भरोसे है, झोलाछाप डाक्टर अपनी दुकानदारी सजाकर मरीजों का इलाज कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन कुंभकरण की नींद सो रही है ,लगता है जब तक कोई बहुत बड़ी घटना कारीत नहीं हो जाएगी तब तक जिला प्रशासन नींद से नहीं जागेगा। यही कारण है कि झोलाछाप डॉक्टरों का हौसला दिन प्रतिदिन बढ़ता चला जा रहा है और वह धड़ल्ले से मरीजों से पैसे कमाने के लिए उनके जीवन से खिलवाड़ करते रहते हैं ।
◆जांच की हो रही केवल खानापूर्ति
झोलाछाप डॉक्टरों की लगातार बढ़ती संख्या के लिए सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है, वहीं विभाग द्वारा झोलाछाप पर कार्रवाई न होना भी बढ़ा कारण है। कैसे करते हैं इलाज झोलाछाप डॉक्टर पहले उल्टा सीधा इलाज करते हैं,इसके बाद जब स्थिति काबू से बाहर हो जाती है तो किसी बड़े डॉक्टर को दिखाने के नाम पर अपनी पीछा छुड़ा लेते हैं। शहालांकि, तब तक स्थिति यह हो जाती है कि मरीज को बचाया जाना संभव ही नहीं रहता है, ये डॉक्टर बुखार की जांच के लिए कोई भी टेस्ट तक कराने की सलाह नहीं देते हैं। बिना प्रशिक्षण के लोगों को इंजेक्शन लगाने के साथ ग्लूकोज व अन्य दवाओं को चढ़ा देते हैं। दवा की डोज की सही जानकारी न होने के बावजूद सामान्य बीमारी में लोगों को दवा की हैवी डोज दे देते हैं। इसके चलते कई बार लोगों को एलर्जी व शारीरिक अपंगता तक हो जाती हैं। ग्रामीणों ने मांग की है कि जिला व उपखंड प्रशासन उक्त मामले को संज्ञान में लेते हुए झोलाछाप डॉक्टरों पर विशेष दल बनाकर कार्यवाही करे।