Monday, April 28, 2025
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बिना चिकित्सक संचालित हो रहा निजी अस्पताल “जीवनधारा”, मरीजों के स्वास्थ्य के साथ हो रहा खिलवाड़

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◆ न डॉक्टर, न विशेषज्ञ केवल कार्मिकों के भरोसे संचालित निजी अस्पताल

◆ आहोर के निजी अस्पताल जीवनधारा अस्पताल का मामला।

आहोर (जालोर)। विभाग के नियमों को ठेंगा दिखाकर धड़ल्ले से निजी अस्पताल संचालित रहे हैं।और आहोर की भोली भाली जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। आहोर उपखंड मुख्यालय पर संचालित कई निजी अस्पतालों की हकीकत कुछ अलग है, जहां न तो कोई पंजीकृत विशेषज्ञ डॉक्टर तैनात हैं और न ही न्यूनतम चिकित्सा नियम कायदों का पालन किया जा रहा है। इसके बावजूद ये अस्पताल नर्सिंग स्टाफ के भरोसे गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों का इलाज कर रहे हैं, जो चिकित्सा अधिनियमों का खुला उल्लंघन करने के साथ ही आमजन की जान के साथ भी गंभीर खिलवाड़ किया जा रहा है।

चिकित्सा विभाग जालोर की उदासीनता के चलते जिले के निजी अस्पतालों की मनमानी और अव्यवस्थाओं का बोल बाला है। ऐसे कई निजी अस्पतालों में बिना चिकित्सक ही इलाज और उपचार दिया जा है, जो नियमों के खिलाफ है साथ ही ग्रामीण क्षेत्रो में नीम हकीमो झाल भी फैलता ही जा रहा है। की सही मायने में डिग्रीधारी डॉक्टर की जरूरत ही नहीं । दरअसल, कई ऐसे निजी अस्पताल है जहां डॉक्टर बिना डिग्री के अपनी चाँदी कूट रहे है और मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे है, ऐसे में चिकित्सा विभाग मूक दर्शक बनकर बस तमाशा देख रहा है, प्रशासन और शासन की लापरवाही आमजन के लिए परेशानी का सबक बनती जा रही है, बिना किसी ज्ञान जानकारी के मरीजों को इलाज देना मरीज की जान के साथ खिलवाड़ भारी पड़ सकता है।

जांच के नाम पर खाना पूर्ति, विभाग मौन

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, कई निजी अस्पताल ऐसे हैं जहां रजिस्टर में किसी डॉक्टर का नाम तो दर्ज होता है, लेकिन हकीकत में वह अस्पताल में कभी नजर नहीं आता। इनकी जगह अनुभवहीन नर्सिंग स्टाफ या कंपाउडर ही मरीजों को दवाइयां लिखते के साथ इंजेक्शन तक लगा देते है। चिकित्सा विभाग के अधिकारी भी इसको नजर अंदाज करते नजर आ रहे है। कई बार शिकायतों के बाद भी विभाग के अधिकारी कार्यवाही के नाम पर सिर्फ खाना पूर्ति की जाती हैं।
ऐसा ही एक मामला आहोर के एक निजी अस्पताल का सामने आया है जहा पूरा अस्पताल केवल एक कार्मिक के सहारे चल रहा है, सूत्रों के अनुसार वह कार्यरत युवक ले पास नर्सिंग कर्मी की डिग्री भी नहीं है ! वही बड़ी बात यह है की अस्पताल की फाइल पर बड़े डॉक्टर्स के नाम और फोटो लगे है । जब आस पास और मरीजों से इस विषय में जानकारी ली तब पता लगा की इन डॉक्टर पिछले लम्बे समय से किसी का ईलाज करते नहीं देखा हैं।
मीडिया के स्टिंग के ऑपरेशन में जब एक बालक को बीमार बता कर अस्पताल ले जाया गया ,तो वह खड़े कार्मिक ने स्लिप बनाते हुए उपचार शुरू कर दिया, बिना किसी डॉक्टर की सलाह और उनकी मौजूदगी के ! ऐसे में सवाल यह है की क्या उस कार्मिक को बिना अधिकार के जाँच करने और उपचार करने का हक़ है ? क्या अस्पताल में कोई बड़ा डॉक्टर है ही नहीं ? क्या जिनके फोटो फाइल पर है वह डॉक्टर यहाँ सेवा देते है अथवा केवल मरीजों को भ्रमित करने के लिए उनके फोटो लगाए गए है ?

लाइसेंस नवीनीकरण और पंजीयन भी सवालों के घेरे में

प्राप्त जानकारी के अनुसार, कुछ अस्पतालों के पास आवश्यक लाइसेंस या नवीनीकरण दस्तावेज भी अधूरे हैं, लेकिन प्रशासन की ढिलाई के चलते उन्हें बेरोकटोक संचालित किया जा रहा है। जबकि नियमानुसार, किसी भी अस्पताल को संचालन के लिए पंजीकृत MBBS या विशेषज्ञ डॉक्टर की नियुक्ति आवश्यक है, और बिना वैध लाइसेंस के संचालन दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। परन्तु जीवनधारा अस्पताल में न नर्सिंग कर्मी है, ना ही कोई और बस मरीजों को भ्रमित करके उनसे पैसा बटोरा जा रहा है और उनकी जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है,

◆”स्टिंग “के दौरान हुआ निजी अस्पताल के अनियमितता का खुलासा

मीडिया को जानकारी मिली तो सच जानने के लिए अस्पताल का स्टिंग ऑपरेशन किया ।जिसमे नर्सिंग कर्मी बिना किसी विशेषज्ञता के डमी मरीज पर प्रयोग कर रहे थे। यह पूरी घटना कैमरे में कैद हो गई। ऐसे में मरीज को सीधे इलाज देना और उपचार शुरू करना मरीज के लिए कितना नुकसान दायक हो सकता है। सबसे गंभीर सवाल यह उठता है कि इस अस्पताल को किस आधार पर अनुमति दी गई । क्या प्रशासन और चिकित्सा विभाग ने कभी अस्पताल का निरीक्षण किया है? या फिर सबकुछ मिलीभगत का नतीजा है? इस पूरे मामले में क्षेत्रीय जन प्रतिनिधियों की चुप्पी भी सवाल खड़े कर रही है। जनता की ओर से बार-बार शिकायतें मिलने के बावजूद, न कोई बयान सामने आया और न ही कोई पहल। इससे आमजन का प्रशासनिक तंत्र और राजनीतिक प्रतिनिधित्व दोनों पर से भरोसा उठता नजर आ रहा है। गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार इलाज के लिए इन निजी अस्पतालों का रुख करते हैं, लेकिन वहां मिलने वाली अयोग्य चिकित्सा से मरीजों की हालत और बिगड़ जाती है। इलाज के नाम पर मोटी रकम वसूलना, फिर रेफर कर देना आम बात हो गई है।

स्वास्थ्य विभाग की निष्क्रियता पर भी सवाल

स्वास्थ्य विभाग की नियमित निरीक्षण प्रणाली की कमी का फायदा उठाते हुए कई निजी अस्पताल मनमानी पर उतरे हुए हैं। जिला स्तर से लेकर उपखंड स्तर तक के चिकित्सा अधिकारियों की ओर से कोई प्रभावी मॉनिटरिंग नहीं हो रही है। नतीजा ये कि इन अस्पतालों में मरीजों की जान भगवान भरोसे ही चल रही है।

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